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Thursday, 10 December 2015

जानिए कौन है ओशो....

आज ओशो का जन्मदिन
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 जानिए कौन है ओशो....
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सीक्रेट ऑफ ओशो
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(11 दिसम्बर 1931-19 जनवरी 1990)


11 दिसंबर 1931 को जब मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गाँव (रायसेन जिला) में ओशो का जन्म हुआ तो कहते हैं कि पहले तीन दिन न वे रोए, न दूध ‍पिया- जैसे कि सात सौ वर्ष पूर्व का इक्कीस दिवसीय उपवास पूरा कर रहे हों। उनकी नानी ने एक प्रसिद्ध ज्योतिषी से ओशो की कुंडली बनवाई, जो अपने आप में काफी अद्‍भुत थी।

कुंडली पढ़ने के बाद वह बोला, यदि यह बच्चा सात वर्ष जिंदा रह जाता है, उसके बाद ही मैं इसकी मुकम्मल कुंडली बनाऊँगा- क्योंक‍ि इसके लिए सात वर्ष से अधिक जीवित रहना असंभव ही लगता है, इसलिए कुंडली बनाना बेकार ही है।

सात वर्ष की उम्र में ओशो के नाना की मृत्यु हो गई तब उनकी लाश ओशो के सामने पड़ी थी और पूरी रात वे उनकी नानी के साथ थे। ओशो अपने नाना से इस कदर जुड़े थे कि उनकी मृत्यु उन्हें अपनी मृत्यु लग रही थी वे सुन्न और चुप हो गए थे लगभग मृतप्राय। लेकिन वे बच गए और सात वर्ष की उम्र में उन्हें मृत्यु का एक गहरा अनुभव हुआ।
ज्योतिष ने कहा था कि 7 वर्ष की उम्र में बच गया तो 14 में मर सकता है और 14 में बचा तो 21 में मरना तय है, लेकिन यदि 21 में भी बच गया तो यह विश्व विख्यात होगा।

14 वर्ष की उम्र में उनके शरीर पर एक जहरिला सर्प बहुत देर तक लिपटा रहा। फिर 21 वर्ष की उम्र में उनके शरीर और मन में जबरदस्त परिवर्तन होने लगे उन्हें लगा कि वे अब मरने वाले हैं तो एक वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गए, जहाँ उन्हें संबोधि घटित हो गई। बस यही से दुनिया का भविष्य तय हो गया।
बुद्ध आए और चले गए। उनके जाने के 300 वर्ष बाद के काल में दुनिया पूर्णत: बदल गई। ईसा आए और चले गए और उनके जाने के बाद दुनिया में जबरदस्त बदलाव हआ। मोहम्मद आए और चले गए लेकिन आज सब जानते हैं कि दुनिया कितनी बदल गई है। निश्चित ही उनके जीवित रहते दुनिया में कोई बदलाव नहीं हुआ। बदलाव तो तब होने लगता है जबकि उनके विचारों की सुगंध धीरे-धीरे धरती के कोने-कोने में फैल जाती है।

बदलाव की बहार :
ओशो के विचार सृजन के हर क्षेत्र में बदलाव ला रहे हैं जैसे कि बदलने लगा है हमारा साहित्यकार, हमारा फिल्मकार और हमारा व्यापारी। बदल रही है राजनीति और विश्व की सरकारों की सोच। ओशो के संन्यासी विश्व के प्रत्येक देश में ओशो के विचारों को प्रसारित और प्रकाशित करने में लगे हैं।
ओशो ने जीवन में कभी कोई किताब नहीं लिखी। मगर दुनिया भर में हुए संतों और अद्यात्मिक गुरुओ की श्रृंखला में वे एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिनका बोला गया एक-एक शब्द प्रिंट, ऑडिओ और वीडिओ में उपलब्ध है। आज हैरी पाटर के बाद ओशो ही एक ऐसी शख्सियत हैं जिनको दुनिया भर में सबसे अधिक पढ़ा जाता हैं। हैरी पाटर का विश्व की सबसे ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इसके बाद अगर किसी और पुस्तक का स्थान है तो वह ओशो की किताबें हैं।

दुनिया में कहीं न कहीं किसी न किसी भाषा में हर रोज ओशो की एक पुस्तक प्रकाशित हो रही है। ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजोर्ट पुणे के अनुसार हैरी पाटर की किताब का विश्व की 64 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है जबकि ओशों की किताबें 54 भाषाओं में अनुदित हो चुकी हैं। आने वाले समय में विश्व की सभी भाषाओं में प्रकाशित करने का लक्ष्य रखा है। ओशों की पुस्तकों के लिए इस समय दुनिया की 54 भाषाओं में 2567 प्रकाशन करार हुए हैं। इनमें प्रकाशित होने वाले ओशो साहित्य की सालाना बिक्री तीस लाख प्रतियों तक होती है।

आज की तारीख में दुनिया भर में ओशों के प्रकाशकों की संख्या 212 तक पहुँच चुकी है। इनमें दुनियाभर के सबसे बड़े और सबसे ज्यादा प्रकाशनों वाली संस्था भी शामिल है। ये हैं न्यूयॉर्क के रेंडम हाउस और सेंट मार्टिन प्रेस, इटली के बोम्पियानी और मंडरडोरी, स्पेन के मोंडाडोरी रेंडम हाउस तथा भारत के पुणे जैसे संस्थान। पहले ओशो की पुस्तकों को तीन से पाँच हजार पुस्तक की दर से छापा जाता था वहीं अब उसका पहला मुद्रण 25 हजार तक होना मामूली बात है।

ओशो साहित्य की लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि ओशो की आत्मकथा नामक पुस्तक के पहले संस्करण की दस हजार सजिल्द प्रतियाँ इटली में केवल एक महीने में ही बिक गई। स्पेनिश भाषा में ओशो की पुस्तकों की सालाना बिक्री ढाई लाख से भी अधिक है।

ओशो की पुस्तक जीवन की अभिनव अंतदृष्टि का पेपरबैंक संस्करण सारी दुनिया में बेस्ट सेलर साबित हुआ है। वियतनामी, थाई और इंडोनेशियाई समेत 18 भाषाओं में इसकी दस लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। भारतीय भाषाओं में हिन्दी के अलावा तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मराठी, गुजराती, गुरुमुखी, बंगाली, सिंधी तथा उर्दू में ओशो की पुस्तकें अनुदित हो चुकी हैं। 

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