तेरी मासूम आँखों में शरारत अच्छी लगती है
मेरी दुख्तर मुझे तेरी हर आदत अच्छी लगती है...👱🏻
ख़ुदा ने बख़्शी जो मुझको ये नेमत अच्छी लगती है
बना हूँ बाप बेटी का ये अज़मत अच्छी लगती है...👩🏼
जो सर से पाँव तक है वो नज़ाक़त अच्छी लगती है
परी जैसी जो पाई है वो ज़ीनत अच्छी लगती है...👨🏼
हमल में माँ के जब तू थी तसव्वुर तब भी करता था
मगर अब गोद में आकर हक़ीक़त अच्छी लगती है...👧🏼
नहीं मिलता है इक पल भी तेरे बिन चैन अब मुझको
अब आठों पहर ही तेरी ये क़ुर्बत अच्छी लगती है...👦🏼
तुझे देखूँ शफ़क़्क़त से तो ज़िंदा होती इक सुन्नत
ख़ुदा को बाप की तेरे शफ़क़्क़त अच्छी लगती है...💁
तेरे आने से मैरे घर में जैसे इक बहार आई
ये चारो सिम्त बिखरी जो मुसर्रत अच्छी लगती है...🙅
तुझे चूमूँ तो कुछ एहसास होता है रूहानी सा
बयाँ मैं कर नहीं सकता वो लज़्ज़त अच्छी लगती है...🙆
मेरा चेहरा जो छूती है तू अपने नर्म हाथो से
तेरी नाज़ुक हथेली की नज़ाक़त अच्छी लगती है...🙆
मेरी मूछ-ओ-गफ़र नोचे किसी की क्या मज़ाल आख़िर
मगर अय लाड़ली तेरी ये हरक़त अच्छी लगती है...🙋
शुरू होकर तुझी पे ख़त्म होती है मेरी दुनिया
अगर है ये कोई वहशत तो वहशत अच्छी लगती है...🙎
कुशादा हो गया आने से तेरे रिज़्क़ मेरा भी
तेरी क़िस्मत से रोज़ी की इज़ाफ़त अच्छी लगती है...🙍
ज़रा सी फ़िक्रे फ़र्दा भी मुझे अब आ गई शायद
तेरी ख़ातिर हर इक शय में क़नाअत अच्छी लगती है...💆
ये मालो ज़र भला क्या चीज़ है मैं जान भी दे दूँ
मैं जब पूरी करूँ तेरी ज़रूरत अच्छी लगती है...💆
तू सबसे छोटी है फिर भी तू ही मलिका मेरे घर की
रियाया हम तेरी हमको हुकूमत अच्छी लगती है...🙍
तुझे ख़ामोश देखूँ तो लगे है बोझ सा दिल पे
अगर तू चहचहाए तो तबीअत अच्छी लगती है...🙎
वो मेरी ही किसी इक बात पे नाराज़ हो जाना
फिर आकर मुझसे मेरी ही शिकायत अच्छी लगती है...🙋
है मेरी ज़िन्दगी में क्या तेरी क़ीमत ये मैं जानू
तू बस अनमोल है मुझको ये क़ीमत अच्छी लगती है...🙆
मैं सारा दर्द अपना भूल जाता हूँ तेरे ख़ातिर
पसीना जब बहाता हूँ मुशक़्क़त अच्छी लगती है...🙅
लगाकर जब तुझे कंधे सुलाता हूँ मैं रातों को
तो अगली सुब्ह तक तेरी हरारत अच्छी लगती है...💁
ख़ता पे मेरी जुर्माना लगाती है तू जब झट से
तो पल में फैसला देती अदालत अच्छी लगती है...💆
जिरह करती है जब मेरी तरफदारी में अम्मी से
तो सारे घर को तेरी वो वकालत अच्छी लगती है...🙍
तू अपनी दादी अम्मी का जब अक्सर सर दबाती है
तो उनके अश्क़ कहते हैं के ख़िदमत अच्छी लगती है...🙎
तेरे दादा फिर वो भी बिठाकर शानों पे
कहते के रिफ़अत अच्छी लगती है...🙋
मुसीबत तुझको कहती हैं कभी जब लाड में नानी
तो अगले पल ही कहती हैं मुसीबत अच्छी लगती है...🙆
रुलाकर एक दिन मुझको पराये घर तू जायेगी
अमीन आख़िर मैं हूँ तेरा अमानत अच्छी लगती है...🙅
तुझे मैं दूर ख़ुद से ज़िन्दगी भर कर नहीं सकता
मगर ये सच है बेटी जब हो रुख़सत अच्छी लगती है...💁
कभी भी फ़र्क़ बेटे में न बेटी में किया
मुझे पुरखो की अपने ये रवायत अच्छी लगती है...👶🏻
No comments:
Post a Comment
खालील comment Box मध्ये पोस्ट विषयी प्रतिक्रिया लिहू शकता